आज दिल थोड़ा घबराया हुआ सा है, शायद पहली मुलाक़ात की बेईचैनी है ये। तुम्हारी बातों को पढ़ कर, तुम्हारे बारे में सोच कर जैसे पल भर में दिन यूं निकल जाता था, आज का दिन वैसा नहीं, ये वक़्त मुझे आज सता रहा है, मेरी इस हालत का मानो मजे ले रहा है, ये वक़्त आज बीतने का नाम नहीं ले रहा। बार बार मेरी कलाई की घड़ी को देख रही हूं, चार बजने में मानो अब भी सदियों बाकी है। गंगा किनारे बैठ , पैर छलकाए , मेरे घुंघराले बालों के साथ मेरी नारंगी दुपट्टा ठंडी हवाओं में लेहरा रहा हैं, मानो ये भी तुम्हारी ही राह ताक रही है। याद है मुझे तुम्हे डूबते सूरज का रंग पसंद है, ये कहा था तुमने कुछ महीनों पहले एक चिट्ठी में। शायद इस रंग में लपेटे देख, मैं कुछ और भा जाऊं तुम्हे, उम्मीद बस यही है। तुम्हारी लिखी चिठ्ठी को तकियों तले रख सो जाती हूं रात को सुकून भारी नींद में और कोई देख न ले इसलिए संभाल कर किताबों के बीच चूपा भी देती हूं दिन में। शामों में रेडियो का वॉल्यूम थोड़ा बढ़ा कर "पल पल मेरे दिल के पास" और "कभी कभी मेरे दिल में" जैसे गानों के धुन गुनगुनाते हुए मैने भी दिल की बातें तुम्हारी पते पर लिखी कागज़ो में उतारा है। कोई एक खास गाना जो तुम्हे मेरी याद दिलाती है, वो गा कर सुनाने का वादा भी किया था तुमने, अब सोच रही हूं आवाज कैसी होगी तुम्हारी। मुझे ये तक नहीं पता तुम दिखते कैसे हो, फिर भी दिल कहता है कि ऋषि जी और अमिताभ जैसे फिल्मी हीरो से कम तो नहीं होंगे। पहचान लूंगी फिर भी तुम्हे दूर से ही, इतने महीनों से जाना जो है। अब बस आंखों से मुलाक़ात होना बाकी है। नील रंग का शर्ट जो पहन कर आओगे, अच्छा तो तुम्हे दिखना ही है। पता नहीं कितना मुस्कुराना है और कितना कम बोलना है तुम्हारे सामने। ग़ालिब और प्रेमचन्द की कविताएं हम दोनों को पसंद है, शायद उस बारे में कुछ बातें होंगी। मेरे कॉलेज से कुछ ही दूरी पर श्याम हलवाई के जलेबी मुझे काफी पसंद है, तुम्हे वो बताना भी तो बाकी है। तुम्हारा हात धरे भीर वाली पतली गलियों से गुजर कर पास वाली मंदिर की सीढ़ियों पर बैठना बाकी है और साथ बैठ इस ढलती हुई शाम को निहारना बाकी है। अब लगता है ख़त्म हुई है इंतजार, वो जो दूर से चल कर इस तरफ आ रहा है, शायद वो तुम ही हो...
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